प्रोत्साहन

कलम देश की बड़ी शक्ति है, भाव जगाने वाली
दिल ही नहीं, दिमागों में भी आग लगाने वाली।


देश के वरिष्ठ कलाकार, रंगकर्मी, शिक्षाविद्, कवि, साहित्यकार के माध्यम से विभिन्न कलाओं को प्रोत्साहित किया गया है । जिससे हजारों लोग प्रशिक्षित एवं शिक्षित होकर समाज का चतुर्दिक विकास कर रहे हैं ।



मदिरायल नहीं पुस्तकालय चाहिए ।
शराब नहीं किताब चाहिए ।


न्यास का यह स्लोगन देशवासियों के जुबान पर हैं । संसद से सड़क तक इस अभियान को मजबूती से आगे बढाया गया है ।

न्यास पुस्तक संस्कृति को जन-जन तक पहुँचाने के लिए लाखों पुस्तकों का मुफ्त वितरण पुस्तक प्रेमियों के बीच किया है। देशभर में सैकड़ों पुस्तक मित्र पंचायत का आयोजन किया गया । देशभर के विभिन्न राज्यों में कविता पाठ, कहानियों का पुनपीठ, लेखक प्रतियोगिता, भाषण प्रतियोगिता के माध्यम से पुस्तकों से जोड़ने का अभियान चलाया गया जो काफी सफल रहा ।

सभ्य समाज बनाने में पुस्तकों का योगदान सर्वाधिक है । पुस्तकें न सिर्फ सबसे अच्छी मित्र, बल्कि वे बेहतरीन शिक्षक भी हैं । पुस्तकें हमे अपनी परम्पराओं और संस्कृति से प्रेम करना सिखाती हैं, हमें इस काबिल बनाती हैं कि हम दूसरों के दु:ख-दर्द को समझ सकें और समाज को कूछ बेहतर योगदान दे सकें । आज की मशीनी जीवनशैली में तो पुस्तकों का महत्व और भी ज्यादा बढ़ जाता है । पुस्तक मित्र पंचायत मानवता के बुनियादी मूल्यों की रक्षा और उनके प्रचार-प्रसार का अभियान है । इसका उद्देश्य है कि लोग पुस्तकों की महत्ता समझें और पुस्तकों में निहित ज्ञान के खजाने से जीवन को दिशा देने की कोशिश करें । प्राचीन काल में भारत के जगद्गुरु बनने में नालन्दा और विक्रमशिला के पुस्तकालयों ने विशेष भूमिका निभायी थी । पुस्तक सस्कृति को जन-जन तक पहुँचाने के लिए प्राचीन पुस्तकालयों का जीर्णोद्धार एवं नवीन पुस्तकालयों का निर्माण आवश्यक है । सुखद है कि न्यास ने देश के कोने-कोने में जिन पुस्तक मित्र पंचायत और संस्कृति महोत्सवों का आयोजन किया, उनकी ध्वनियाँ हमारी संसद में भी गूँजी । इसका रचनात्मक परिणाम नेशनल मिशन ऑन लाइब्रेरी (एन. एम. एल.) के रूप में हम सबके सामने आ चुका है ।

न्यास विभिन्न क्षेत्रों में प्रोत्साहन का कार्य कर रहा है । उसका प्रमाण न्यास से प्रकाशित साहित्य में उपलब्ध है । आगे भी दबे हुए प्रतिभाओं को उभारने का कार्य जारी रहेगा ।

राष्ट्रकवि दिनकर ने कहा है -

तामस बढ़ता यदि गया धकेल प्रभा को,
निर्बंघ पंथ यदि नहीं मिला प्रतिभा को,
रिपु नहीं, यही अन्याय हमें मारेगा,
अपने घर में ही फिर स्वदेश हारेगा।