संस्थापक


कलम आज उनकी जय बोल...

राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर' स्मृति न्यास वर्तमान समय में विद्यमान विसंगतियों के विरोध में एक स्वत:स्फूर्त प्रयास है। समय की माँग और विसंगतियों को देखते हुए न्यास की स्थापना के विचारों का अंकुर फूटा और ज्ञान की भूमि नालंदा, न्यास की जन्मभूमि बनी । जिस भूमि से ज्ञान की रश्मियाँ प्रस्फुटित होकर पूरे विश्व में फैलीं, उसके गर्भ से राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर' स्मृति न्यास की उत्पत्ति हुई, जो सहज और स्वाभाविक है।

सकारात्मक विचारों और गरिमामयी अनुभूतियों से ओत-प्रोत संकल्पों के साथ राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर' स्मृति न्यास ने साहित्य एवं समाज के सूर्य राष्ट्रकवि दिनकर के विचारों को जन-जन तक पहुँचाने का बीड़ा उठाया । दिनकर का व्यक्तित्व और कृतित्व जन-चेतना का संवाहक है । देश के शिक्षाविद्, संस्कृतिकर्मी, पत्रकार, कलाकार, राजनेता, किसान, नौजवान से परामर्श एवं सुझाव लेकर न्यास के गठन क्री प्रक्रिया को आगे बढाया। गणमान्य व्यक्तियों के मार्गदर्शन में 23 सितम्बर, 1995 को (दिनकर जी के 90वें जन्मदिवस के सुअवसर पर) राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर' स्मृति न्यास का विधिवत् गठन हुआ । वास्तव में दिनकर जैसे निष्काम कर्मयोगी, जिनका जीवन मानवता एवं शैक्षणिक उन्नयन के लिए समर्पित था, के नाम पर न्यास का नामकरण गौरव की बात है। जनचेतना के उद्घोषक, क्रांतिवीर, राष्ट्रकवि दिनकर आजीवन ज्ञान-साधना में रत रहते हुए अपनी अदभुत साहित्यिक सृजनशीलता के द्वारा ज्ञान की मशाल जलाकर जनमानस को आलोकित करते रहे ।

न्यास विगत् 20 वर्षों से दिनकर के सपनों को साकार करने तथा सबल, आत्मनिर्भर समृद्ध एवं सांस्कृतिक भारत के निर्माण में अनवरत् प्रयासरत् है । दलित-शोषित, पीड़ित और वंचित वर्ग की समृद्धि और खुशहाली के लिए न्यास का यह प्रयास है कि इन्हें इनका हक मिल सके और हाशिए पर डाल दिए गए प्रत्येक व्यक्ति को समाज में उसका सही स्थान प्राप्त हो सके:


छोड़ो मत अपनी आन, सीस कट जाये,
मत झुको अनय पर, भले व्योम फट जाये।

न्यास ने शैशवकाल से लेकर किशोरावस्था तक की यात्रा दुर्गम, पथरीले और बीहड़ रास्तों से होकर पूरी की है । इस यात्रा में अनेक कार्यक्रम मील का पत्थर साबित हुए हैं जैसे - हिंदी विकास यात्रा, पुस्तक संस्कृति महोत्सव, गीतांजलि महोत्सव, रवीन्द्र सांस्कृतिक महोत्सव, सूर्य महोत्सव, रश्मिरथी महोत्सव, सद्भावना महोत्सव, भारतीय शिक्षा-संस्कृति महोत्सव, सैंकडों सेमिनार, यात्रा, संवाद कार्यक्रम भारत के विभिन्न राज्यों में भव्य तरीके से आयोजित किये गये हैं। न्यास सांस्कृतिक एवं समृद्ध भारत निर्माण के लिए अनवरत् कार्य कर रहा है । इस अभियान को देशभर के कलाकार, शिक्षाविद्, अध्यापक, राजनेता, स्वयंसेवी, किसान, नौजवान एवं समाज के सभी तबके के लोगों का रचनात्मक सहयोग एवं सानिध्य मिल रहा है ।

आशा है कि आगे भी राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर' स्मृति न्यास के चुनौतीपूर्ण कार्यों में समाज के हर तबके का भरपृर सहयोग हमें उसी प्रकार मिलता रहेगा, जिस प्रकार आज तक मिलता आया है । आपके मार्गदर्शन ने ही हमें वह शाक्ति दी है, जिसके सहारे न्यास ने विगत् 20 वर्षों की यात्रा सफलतापूर्वक तय की है । आपका वैचारिक सहयोग न्यास को मिलता रहा तो सास्कृतिक एवं समृद्ध भारत का स्वप्न अवश्य साकार होगा ।

आपके विचार हमारे लिए प्रेरणा एवं शक्ति के स्रोत हैं।

राष्ट्रकवि दिनकर ने कहा है -

समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याध,
जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनका भी अपराधा ।

नीरज कुमार, अध्यक्ष
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर' स्मृति न्याय